खरबूजे की खेती: खरबूजे की खेती गर्मी के मौसम में की जाती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह मूत्राशय संबंधी रोगों के लिए खरबूजे का सेवन बहुत ही उपयोगी माना जाता है। पानी की मात्रा अधिक होने के कारण गर्मी के मौसम में इसका सेवन शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही खरबूजे के बीजों का प्रयोग मिठाई को संजाने, उन्हें आकर्षक लुक देने के लिए किया जाता है। इस प्रकार खरबूजे के फलों के साथ, इसके बीजों की मांग भी बनी रहती है, जो इसकी खेती को आर्थिक दृष्टि से लाभकारी बनाता है। इसकी खेती अधिकांशतः (लगभग 80%) नदियों के किनारे की जाती है। खरबूजे की प्रमुख रूप से खेती किये जाने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, एवं मध्य प्रदेश के नाम शामिल हैं। हमारा देश भौगोलिक रूप से विविधताओं से भरा देश है, जिससे यहाँ क्षेत्रानुसार जलवायु में भिन्नता देखी जाती है। अगर अपने क्षेत्र की मिट्टी एवं जलवायु की क्षमता का उचित आकलन कर खेती की जाए, तो यह विविधता हमारे लिए वरदान साबित हो सकती है। दूसरे शब्दों में कहें तो अगर कृषि में वैज्ञानिकता को महत्त्व दिया जाए, तो कृषि हमारे जीविकोपार्जन का बहुत ही सबल माध्यम बन सकता है। आज हम खरबूजे की भी वैज्ञानिक तरीके से कैसे खेती की जाए, इसपर चर्चा करेंगे। इस आर्टिकल में हम आपको उपयुक्त जलवायु, उपयुक्त मिट्टी, उन्नत किस्म की जानकारी देने के साथ-साथ फसल की बुआई से लेकर इसकी तुड़ाई तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया की जानकारी देने का प्रयास करेंगे।
खरबूजे की खेती के लिए गर्म एवं शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। इसकी खेती वैसे भूमि में की जानी चाहिए, जहाँ जल की उपयुक्त निकासी हो। जहाँ तक मिट्टी की बात है, तो बलुई या दोमट मिट्टी, जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक हो, बेहद ही उपयुक्त मानी जाती है। बीजों के अंकुरण एवं पौधे के विकास के लिए 22 से 26 डिग्री के बीच का तापक्रम उपयुक्त होता है।
खरबूजे की खेती के लिए सबसे पहले उपयुक्त मिट्टी वाली भूमि का चुनाव करना बेहद ही जरुरी है। इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की उचित मात्रा हो, तथा जिसका पीएच मान 6 से 7 हो एवं जिसकी जल-शोषण की क्षमता अधिक हो, खरबूजे के लिए उपयुक्त मिट्टी होती है। पथरीली भूमि या जहाँ पानी का जमाव हो, वैसे भूमि खरबूजे के विकास के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है। मिट्टी के चुनाव के बाद सबसे प्राथमिक एवं अहम् कार्य होता है, खेत की तैयारी यानी मिट्टी की तैयारी। बता दें कि खरबूजे की खेती के लिए मिट्टी की तैयारी विशेष नहीं, बल्कि सामान्य रूप से ही करने की जरुरत है। इसके लिए आपको पहली जुताई में मिट्टी को पलटने का कार्य करना है, जिसके बाद 2 से 3 जुताई प्लाऊ या कल्टीवेटर से करनी है। ध्यान रहे कि आपको प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पाटा चलाना है, जो आपके खेत की मिट्टी को भूरभूरा एवं समतल बनाएगा, जिससे सिंचाई के दौरान पानी का उचित एवं समान वितरण संभव हो पाएगा।
किसी भी फसल की उन्नत एवं बेहतर पैदावार के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मिट्टी के साथ-साथ उन्नत किस्म का चुनाव करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। मार्केट में खरबूजे की बहुत सारी किस्में उपलब्ध हैं, जिनमें कुछ प्रमुख निम्न है-
काशी मधु:- इस किस्म के फल का वजन लगभग 800 ग्राम के आस-पास होता है, जिसके गुदे का रंग गहरा नारंगी होता है। यह फफूंद से होने वाले रोग का प्रतिरोधी होता है, जिसकी औसत पैदावार 200 से 250 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।
अर्का अजीत:- इसका फल होता होता है, जिसका औसत वजन 350 ग्राम होता है। इसके फल का रंग सुनहरा नारगी होता है, जिसकी पैदावार 140 से 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।
हरा मधु:- इस किस्म के खरबूजे आकार में बड़े होते हैं, जिसका औसत वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है। पकने पर ये पीले रंग के हो जाते हैं, जिसपर हरे रंग की धारियां बनी होती है। इस किस्म की फसल की औसत उपज 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।
पंजाब सुनहरी:- इसके फलों का औसत वजन 1 किलोग्राम होता है। इसकी औसत उपज 175 से 200 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।
पंजाब संकर-1:- इस फल के गुदा काफी सुगन्धित होते हैं, जिसका औसत उपज 160 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।
पौधे के उचित विकास के लिए पोषक तत्वों का होना बहुत ही आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना उचित विकास एवं फलों का उचित पैदावार संभव नहीं है। पौधे के विकास के लिए आवश्यक खनिज एवं पोषक तत्व प्रत्येक मिट्टी में उपस्थित नहीं होते हैं, जिसकी पूर्ति के लिए हम खेतों में उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करते हैं। अगर संभव हो तो बीज की बुआई के पूर्व मिट्टी का परिक्षण (Soil Testing) अवश्य करा लेनी चाहिए, जिससे और भी स्पष्टता से हम मिट्टी की गुणवत्ता का आकलन कर सकते हैं। आमतौर पर खरबूजे की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर में 90 किलोग्राम नाइट्रोजन, 70 किलोग्राम फास्फोरस, एवं 60 किलोग्राम पोटाश के प्रयोग की आवश्यकता होती है। जिसमें से नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा का छिडकाव खेत में बीज बुआई के लिए नालियाँ एवं थाले बनाते समय ही कर देनी चाहिए। बचे हुए आधी नाइट्रोजन की मात्रा को बुआई से 20 से 45 दिनों के बाद खड़ी फसल में जड़ों के पास देनी चाहिए। इसके साथ ही फलों की संख्या एवं कुल उपज में वृद्धि के लिए आप बोरोन, कैल्सियम, मालीब्डेनम का 3 मिली ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
क्षेत्र एवं जलवायु के अनुसार खरबूजे की बुआई के समय में भिन्नता होती है। जहाँ मैदानी क्षेत्रों में खरबूजे की बुआई 10 से 20 फरवरी के बीच की जाती है, वहीँ पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुआई का उपयुक्त समय अप्रैल से मई की होती है। नदियों के कक्षार वाली क्षेत्रों में इसकी बुआई नवम्बर या जनवरी के अंतिम सप्ताह में की जाती है। दूसरी तरह मध्य एवं दक्षिण भारत में खरबूजे की बुआई का सही समय अक्टूबर-नवम्बर होती है।
1 हेक्टेयर क्षेत्र में खरबूजे की खेती के लिए 3 से 4 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
भौगोलिक परिस्थितियों एवं जलवायु के अनुसार खरबूजे की बीज की बुआई के अलग-अलग तरीके प्रयोग में लाये जाते हैं। मैदानी क्षेत्रों में खरबूजे की बुआई के लिए 30 से 40 सेमी चौड़ी नालियां (मेढ़े) बनायी जाती है, जिसकी आपस में दूरी 1.5 से 2 मीटर की रखी जाती है। बीज की बुआई मेढ़ों पर 50 से 60 सेमी की दूरी पर की जाती है। बीज की गहराई 1.5 से 2 सेमी की रखी जाती है। वही नदियों के किनारे गड्ढे बनाकर बीज की बुआई की जाती है। इसके लिए सबसे पहले 60 x 60 x 60 सेमी आकार का गड्ढा बनाकर 1:1:1 के अनुपात में गोबर की खाद मिट्टी तथा बालू में मिलाकर बीज की बुआई की जाती है।
खरबूजा प्रमुख रूप से ग्रीष्म ऋतु का फसल है, जिस समय गर्मी अपने चरम पर रहती है, ऐसे में इसमें सिंचाई की अधिक जरुरत पड़ती है। इस प्रकार ग्रीष्म काल में उगाई जा रही फसलों में 4 से 7 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहनी चाहिए। वहीं नदियों के कक्षारों में बोई जाने वाली फसलों में 1 से 2 बार सिंचाई करने की जरुरत होती है।
चूँकि ग्रीष्म ऋतु एक वर्षा वाला मौसम भी होता है, इसलिए इस काल का फसल होने की वजह से खरबूजे की फसल के दौरान खरपतवार की समस्या भी बनी रहती है। इसलिए समय-समय पर खरपतवार को खेतों से निकालने का कार्य किया जाना चाहिए, वरना ये फसल के विकास में बाधक हो सकते हैं। इसके लिए मैनुअल के साथ-साथ आप रासायनिक खरपतवारनाशी बूटाक्लोर का 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव बीज बुआई के तुरंत बाद से करते रहनी चाहिए।
खरबूजे की बुआई से लेकर फसल की तुड़ाई तक हमें खरबूजे की खेतों को कीटों के आक्रमण से सुरक्षित रखने की जरुरत होती है। वरना ये आकार में छोटे लेकिन संख्या में अधिक होने वाली कीटें आपके पूरे फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। तो आइये जानते हैं कौन से वो कीटें हैं, जिससे खरबूजे की फसल को बचाना आवश्यक है:-
कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकीन बिटिल):- ये कीटें विक्सित पौधे की छोटी पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके साथ ही इनके ग्रब (इल्ली) जमीन के अन्दर होते हैं, जो पौधे की जड़ों पर आक्रमण कर जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। इनके सक्रीय होने का महिना जनवरी से मार्च होता है, लेकिन इनका खतरा कमोबेश अक्टूबर तक बना रहता है।
इसके नियंत्रण का सबसे सरल एवं प्रचलित प्राकृतिक तरीका है, सुबह ओस पड़ने के समय पत्तियों पर राख का छिडकाव करना। इससे यह कीट पौधे पर नहीं बैठता है। वहीं इसके नियंत्रण के लिए जैविक विधि के अंतर्गत अजादीरैक्टिन 300 पीपीएम 5 से 10 मिली प्रति लीटर या अजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत .5 मिली /लीटर की दर से 2 या 3 बार छिडकाव करने से कीटों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। अगर कीटों का बहुत अधिक प्रकोप हो गया हो, तो आप इसके नियंत्रण के लिए रासायनिक कीटनाशी डाईक्लोरोवास 76 ईसी या ट्राईक्लोफेरान का भी उचित मात्रा में छिडकाव कर सकते हैं।
फल मक्खी:- इसकी सूंडी बहुत ही हानिकारक होती है। कीट की प्रौढ़ मादा छोटे, मुलायम फलों के छिलके को बेधकर अन्दर अंडा देना पसंद करती है। अंडे से सूंडी निकलकर फलों के अन्दर के भाग को खाकर नुकसान पहुंचाती है। कीट फल के जिस हिस्से पर अंडे देती है, वह हिस्सा वहां से टेढ़ा होकर सड़ जाता है एवं नीचे गिर जाता है।
इसके नियंत्रण के लिए गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, जिससे मिट्टी की निचली सतह रहने वाली फलमक्खी का प्यूपा धूप लगने से नष्ट हो जाएगा। दूसरा उपाय है, इससे ग्रसित फल को इकठ्ठा करके नष्ट कर दें। इसके साथ ही इसके लिए आप रासायनिक कीटनाशक जैसे क्लोरेंट्रानीलीप्रोल 18.5 एससी. 0.25 मिली प्रति लीटर या डाईक्लोरोवास 76 ईसी 1.25 मिली प्रति लीटर की दर से छिड़काव कर सकते हैं।
चूर्णी फफूँद (चूर्णिल आसिता):- इस रोग से ग्रसित होने के बाद पौधे की पत्तियां एवं तनों की सतह पर सफ़ेद या धुंधले धूसर धब्बे उभरने लगते हैं। कुछ दिनों के बाद ये धब्बे चूर्ण-युक्त हो जाते हैं एवं सफ़ेद चूर्ण पूरे पौधे की सतह को ढक देता है, जिससे पौधे के पत्ते गिर जाते हैं एवं फलों का कार छोटा रह जाता है।
इस रोग के उपचार का प्राथमिक एवं प्राकृतिक तरीका है- सर्वप्रथम इस रोग से ग्रसित पौधों को इकठ्ठा कर लें एवं जला दें। दूसरा बुआई के समय ही इस रोग के प्रतिरोधी बीजों का चुनाव करें। आप इस रोग से बचाव के लिए फफूँदनाशकों जैसे कि ट्राइडीमोर्फ ½ मिली लीटर या माइक्लोब्लूटानिल का 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर 7 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव कर सकते हैं।
मृदुरोमिल आसिता:- इस रोग की पहचान है पत्तियों के उपरी सिरे पर कोणिय धब्बे का बनना। यह तब फैलता है, जब वर्षाऋतु के दौरान तापमान- 20 से 22 डिग्री हो जाता है।
इस रोग से पौधे का बचाव हो, इसके लिए आपको एप्रोन नामक कवकनाशी से शुरुआत में ही बीज का उपचार कर लेना चाहिए। या रोग के दिखने पर प्रारंभ में ही मैंकोजेव 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर) का छिडकाव करना चाहिए।
खीरा मोजैक वायरस:- इस रोग के संक्रमण होने से नई पत्तियों पर छोटे एवं हल्के पीले रंग के धब्बे बनने लगते हैं, जिसके बाद पत्तियां सिकुड़ने लगती है। इसके लक्षण धीरे-धीरे फलों पर भी दिखने लगते हैं, जिसके बाद फलों का विकास अवरुद्ध हो जाता है।
इसकी रोकथाम के लिए आप डाईमेथोएट (0.05 प्रतिशत) रासायनिक दवा का छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।
पूर्णरूप से परिपक्व यानी पक जाने के बाद ही खरबूजे की फलों की तुड़ाई की जानी चाहिए। पके फलों की पहचान निम्न आधार पर कर सकते हैं-
ध्यान रहे उपर्युक्त संकेतों के आधार पर फल की तुड़ाई दिन में गर्मी बढ़ने के पूर्व ही करनी चाहिए। तुड़ाई के बाद फलों के ठंढे स्थान पर स्टोर करना चाहिए।
इस आर्टिकल में हमनें खरबूजे की खेती के विभिन्न चरणों की सभी जानकारी को शामिल करने का प्रयास किया है, ताकि वैसे किसान जो खरबूजे की खेती करना चाहते एवं उनके क्षेत्र की जलवायु इस फसल के अनुकूल है तो वे भी खरबूज की खेती वैज्ञानिक तरीके से कर सकें। हमारा उदेश्य किसानों को आर्थिक रूप से सबल देखना है, और ऐसा तभी संभव है, जब इनोवेटिव नजरिया रखेंगे और नए तरीकों एवं तकनीकों को अपनाएंगे। हमारे देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषकों का है, ऐसे में बिना कृषको की आर्थिक सम्पन्नता के हम विकसित देश नहीं बन सकते हैं। आप ट्रैक्टरकारवां पर अन्य फसलों की खेती की जानकारी के साथ-साथ ट्रैक्टर एवं कृषि यंत्रों की भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।