टमाटर एक ऐसी पॉपुलर सब्जी है जिसकी मांग वर्ष भर बनी रहती है। एक आम घरों के किचेन के व्यंजनों से लेकर 5 स्टार होटल के किचंस की रेसिपी की पूर्णता बिना टमाटर के संभव नहीं है। इसका प्रयोग ताज़ी करने के अलावे इसको प्रोसेसिंग कर चटनी, जूस, अचार, कैचअप, सौस, एवं प्युरी आदि बनाए जाते हैं। इसकी लोकप्रियता का कारण स्वाद के साथ-साथ इसका पोषक तत्वों से भरपूर होना है। क्योंकि यह ना केवल भोजन के स्वाद को बढ़ाने वाली सब्जी है, बल्कि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए जरुरी कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, कैल्सियम, लौह तथा अन्य खनिज पदार्थों का बेहतरीन श्रोत है। टमाटर में लाइकोपीन नामक एक पिगमेंट पाया जाता है, जिसे बेस्ट एंटीओक्सिडेंट माना जाता है। इसके साथ ही इसमें कैरोटिनॉयड्स, विटामिन-सी जैसे एंटीओक्सिडेंट में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। आज हम इस आर्टिकल में स्वाद एवं स्वास्थ्य को बढ़ाने वाली सब्जी टमाटर की वैज्ञानिक खेती करने के तरीके के बारे में जानेंगें।
उल्लेखनीय है कि भारत के लगभग हर क्षेत्रों में टमाटर की खेती की जाती है, जिनमें टमाटर के सबसे अधिक उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, एवं तमिलनाडु के नाम शामिल हैं। ये राज्य देश के कुल टमाटर उत्पादन का लगभग 90% उत्पादन करते हैं। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी ताजा अनुमान के अनुसार चालू फसल वर्ष में प्याज, आलू एवं टमाटर समेत सब्जियों का उत्पादन 6 फीसदी बढ़कर 219.6 मिलियन टन पहुंच सकता है। देश के हर किसान यदि टमाटर को वैज्ञानिक तरीके से उपजाने लगेंगे तो यह आंकड़ा और भी बढ़ जाएगा। तो आइये टमाटर की खेती के बारे में A टू Z जानकारी प्राप्त करते हैं।
वैसे अनुकूल तापक्रम का सभी फसलों के लिए महत्व होता है, लेकिन टमाटर के मामले में इसका महत्त्व कुछ अधिक होता है, क्योंकि इसके लिए आवश्यक तापमान से अधिक होना इसके फलों को नुकसान पहुंचाती है, जिसमें फलों का छोटा होना, अविकसित होना या गिरना शामिल है। इसलिए टमाटर के स्वस्थ विकास के लिए इसको 20-25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच तापक्रम वाली जलवायु उपयुक्त है।
टमाटर की खेती के लिए ह्यूमस वाली (जिसमें जीवांश हो) रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। कहीं-कहीं की मिट्टी अधिक अम्लीय होती है, ऐसे में चूने के प्रयोग से मिट्टी की अम्लीयता को घटानी चाहिए। जुताई में कोई विशेष प्रक्रिया नहीं अपनानी होती है, बस आपको 3-4 बार जुताई करने के बाद पाटा लगाने की आवश्यकता पड़ती है, ताकि मिट्टी भुरभरी होने के साथ मिट्टी समतल हो जाए।
किसी भी फसल की बेहतर पैदावार के लिए उन्नत बीज का चुनाव भी एक अहम् कदम होता है। देश भर में 16 हजार से भी अधिक कृषि वैज्ञानिक कृषि के विकास के लिए समर्पित है, ऐसे में वे कृषि की बेहतरी के लिए नए-नए उन्नत किस्मों का विकास करते रहे हैं। भारत भर में टमाटर की निम्न प्रमुख किस्में हैं, जो पैदावार के हिसाब से बेहतर होने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधी भी हैं।
बीजों के चुनाव में किसानों को कृषि वैज्ञानिकों की भी सलाह लेने की जरुरत है, अगर कोई नई किस्म आने वाली हो या उपलब्ध हो तो किसान सलाहनुसार उसकी बुआई कर सकते हैं। देश में प्रत्येक जिले में कृषि के लिए समर्पित कृषि विज्ञान केंद्र होते हैं, जहाँ से किसान उन्नत बीज की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
किसी भी खेती में बेस्ट यह होता है कि खाद एवं उर्वरक के प्रयोग से पहले मिट्टी की जाँच अवश्य करवा लें, क्योंकि तभी आप मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी के आधार पर उपयुक्त उर्वरक का प्रयोग कर पाएंगे। खाद एवं उर्वरक का प्रयोग का पैमाना किसी भी मिट्टी की उर्वरता शक्ति होती है। अगर सामान्य तौर की बात करें तो 20 से 25 टन सड़ी हुयी गोबर या कम्पोस्ट खाद एवं 100 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 60 से 80 किलोग्राम पोटाश डालनी चाहिए। कुछ किस्में असीमित वृद्धि वाली होती है, जिसके लिए नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाकर 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर करनी चाहिए। वही फास्फोरस एवं पोटाश की कुल मात्रा यानी 60-80 किलोग्राम प्रयोग करनी चाहिए एवं इसमें नाइट्रोजन की एक-तिहाई मात्रा बीज की बुआई से पूर्व ही खेत में डाल देनी चाहिए। बाकी नाइट्रोजन को 2 बराबर मात्रा में बाँटकर 25-30 एवं 45-50 दिनों के बाद खड़ी फसल में डालनी चाहिए।
आपको बता दें कि खेतों में टमाटर के बीज की सीधे बुआई नहीं की जाती है, बल्कि पहले इसके पौधे की तैयारी के लिए एक पौधशाला का निर्माण किया जाता है, जहाँ अनुकूलित स्थति में 3 से चार पत्ती तक पौधे को निकलने दिया जाता है, जिसके बाद इसकी खेतों में रोपाई की जाती है। पौधशाला में टमाटर की सभी प्रकार की बीजों की बुआई का एक समय नहीं होता है, बल्कि बीज के किस्मों एवं स्थान के अनुसार अलग-अलग होती है। शरदकालीन के लिए जुलाई से सितंबर का माह, वसंत एवं ग्रीष्म ऋतु के लिए नवम्बर-दिसम्बर का महिना एवं पहाड़ी वाले इलाकों में इसकी बुआई का उपयुक्त समय मार्च से अप्रैल का माह होता है। इस प्रकार पूरे वर्ष भर टमाटर की खेती की जा सकती है।
अब टमाटर की खेती में एक अहम् सवाल होता है कि आखिर बीज की बुआई की मात्रा का पैमाना क्या होनी चाहिए, तो बता दें आपको बीज की मात्रा टमाटर के बीजों की किस्मों के आधार पर तय करनी चाहिए। सामान्यतया उन्नत किस्मों जो मुक्त परागित किस्में होती हैं, उनकी प्रति हेक्टेयर 350 से 400 ग्राम की मात्रा लेनी चाहिए। वहीं वहीँ संकर किस्मों की 200-250 ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लेनी चाहिए।
पौधशाला यानी नर्सरी में जब 15 से 20 सेमी लम्बाई एवं 5 से 6 पत्तियों वाला पौध तैयार हो जाए, तो समझिये अब यह खेतों में बुआई के लिए परिपक्व हो चुका है। आप पौधे से पौधे की दूरी किस्म, भूमि की उर्वरता एवं रोपाई के समय के आधार पर तय कर सकते हैं। ध्यान रखे की खेतों में पौध की रोपाई करने से 3 से 4 दिन पहले से ही पौधशाला में सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।
नीचे पौधशाला में बीज की बुआई, खेतों में रोपाई की समय, एवं पौधे से पौधे की दूरी की सारणी दी गयी है:
क्षेत्र |
बीज की बुआई का समय |
खेतों में रोपाई का समय |
दूरी (सेमी) |
दूरी (सेमी) |
मैदानी क्षेत्र (शरद ऋतु) |
जुलाई से सितंबर |
अगस्त से अक्टूबर |
60 x 60 |
90 x 50 |
वसंत/ग्रीष्म ऋतु |
नवम्बर से दिसंबर |
दिसम्बर से जनवरी |
60 x 45 |
90 x 50 |
पहाड़ी क्षेत्र |
मार्च से अप्रैल |
अप्रैल से मई |
60 x 45 |
90 x 50 |
किसी भी फसल की उच्च उत्पादकता के लिए उचित मात्रा में सिंचाई होनी बहुत ही आवश्यक है। टमाटर के मामले में पौधे की खेतों में रोपाई के 2 से 3 दिनों बाद फव्वारे से पानी देनी चाहिए। गर्मी के मौसम के दौरान 6 से 8 दिनों के अन्तराल में एवं सर्दियों में 10 से 15 दिनों के अन्तराल में सिंचाई करते रहनी चाहिए। आपको सिंचाई के दौरान इस बात का आवश्य ध्यान रखना चाहिए की सिंचाई के बाद खेतों में पानी जमनें ना पाए, क्योंकि पानी के जमाव से पौधे मुरझाने लगते हैं एवं रोग लगने की सम्भावना भी बढ़ जाती है। इस प्रकार सिंचाई के साथ-साथ जलनिकासी की भी उचित व्यवस्था सुनिश्चित करनी आवश्यक है।
टमाटर की खेती के दौरान स्वस्थ फसल के लिए खरपतवार का नियंत्रण एक बेहद ही जरुरी कार्य हो जाता है। किसान खरपतवार के नियंत्रण के लिए खुरपी या कुदाल का सहारा ले सकते हैं, जिसकी मदद से गुडाई कर आप उन्नत एवं बेहतर पैदावार सुनिश्चित कर सकते हैं। इसके साथ ही इसके नियंत्रण का दूसरा उपाय है पौध के नीचे पुआल या सूखे घास-फूंस बिछा सकते हैं, जिससे खरपतवार नहीं पनप पाता है।
टमाटर की बेहतर पैदावार के लिए निकाई-गुड़ाई करनी भी बहुत आवश्यक है। इसमें आपको खुरपी आदि छोटे टूल्स से पौध की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देनी होती है, इससे पौध को सहारा तो मिलता ही है, साथ ही मिट्टी से पोषक तत्व भी सुगमता से उपलब्ध होते हैं
टमाटर की तुड़ाई उसके उपयोग के अनुसार की जाती है। अगर आपको टमाटर नजदीकी बाजार में बेचना है तो आपको फल पकने के बाद तुड़ाई करनी चाहिए, वहीँ अगर टमाटर किसी दूर स्थित बाजार में भेजना हो तो जैसे ही उसके रंग में बदलाव शुरू हो तो तुड़ाई कर लेनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकिं टमाटर को पकने पर तोड़ने के बाद लम्बे समय नहीं रखा जा सकता है, जिसके कारण दूर के बाजार में पूरी पकी हुई टमाटर ले जाने तक में ख़राब हो सकता है।
किसी भी फसल के लिए बीज बुआई से लेकर कटाई या फल तुड़ाई तक आपको उनकी देखभाल करनी बहुत ही जरुरी है। ऐसे बहुत से कीटें हैं, जो टमाटर की फसल को बहुत ही नुकसान पहुचाते हैं, इसलिए बेहतर उत्पादक के लिए उनका समय पर नियंत्रण करना बेहद ही जरुरी कार्य है।
टमाटर को नुकसान पहुँचाने वाली प्रमुख कीटें:
आइये जानते हैं इन कीटों से टमाटर की फसल को होने वाले नुकसान एवं उनके नियंत्रण के उपाय क्या हैं।
टमाटर का फल बेधक सुंडी- यह कीट टमाटर के कच्चे फलों को अपना आहार बनाती है, जो फलों में छेद करके इसके गुदे को खाती है। इसके द्वारा फलों में छेद करने से फलों में फफूंद भी लग जाते हैं, जिससे फल सड़ जाते हैं।
इसके नियंत्रण के लिए एक तरीका जो अपनाया जाता है वो है, टमाटर के 16 पंक्तियों के बाद एक पंक्ति गेंदा फूल की लगा दी जाती है, जिससे काफी हद तक इसका बचाव कीटों से हो जाता है। दूसरे उपाय में HNPV @ 250 LE को गुड़ के साथ (10 ग्राम/लीटर), साबुन पाउडर (5 ग्राम/लीटर) एवं टिनोपाल (1 ग्राम/लीटर) को पानी में मिलाकर शाम के समय छिडकाव करने से फसल पर कीट आक्रमण नहीं करते हैं। इसके साथ ही मार्केट में रेनेक्स्पायर, साइजेपर जैसे कीटनाशक मिल जायेंगें, जिसकी उपयुक्त मात्रा का छिडकाव कर आप इस कीट से अपनी फसल का बचाव कर सकते हैं।
सफ़ेद मक्खी (बैमीसिया टेबैकी)- यह छोटे एवं सफ़ेद आकर का कीट होता है, जिसका पूरा शरीर मोम से ढका होता है। ये पौधे के पत्तियों से रस चूसते हैं एवं विषाणु रोग का संचार करते हैं, जिससे पत्तियां मुड़ने लगती है और फूल एवं फल आने रुक जाते हैं।
इसके नियंत्रण के लिए बीज को इमिडाक्लोप्रिड से उपचारित करना चाहिए। इसके साथ ही आप मार्केट में उपलब्ध साइजेपर एवं थायामेथेक्जाम जैसे कीटनाशकों का भी सफ़ेद मक्खी के बचाव के लिए प्रयोग कर सकते हैं।
अन्य फसलों की तरह टमाटर के पौधों को भी बहुत सारे रोगों से बचाए रखना पड़ता है। टमाटर में लगने वाले रोग निम्न हैं:
गुरचा (पर्णकुंचन विषाणु)-इस रोग से ग्रसित होने के बाद पत्तियां नीचे की ओर या ऊपर की ओर मुड़ जाती है, यानी पत्तियों में ऐंठ आ जाती है। रोग के अधिक विस्तार होने पर इन पौधों में फूल या फल लगने बंद हो जाते हैं।
यह रोग सफ़ेद मक्खियों द्वारा फैलाया जाता है, जिसके प्रभावी प्रबन्धन के लिए नर्सरी में पौधे एग्रोनेट जाली में उगाया जनन चाहिए। इसके रोकथाम का दूसरा उपाय है कि रोपाई के समय पौधे की जड़ में 5 ग्राम प्रति लीटर गुनगुने पानी में घोल बनाकर पानी ठंढा हो जाने पर 2 से 3 घन्टों तक शोधन करना चाहिए। इसके अलावे आप फूल आने तक इमिडाक्लोप्रिड कीटनाशक का प्रयोग कर इस रोग से बचाव सुनिश्चित कर सकते हैं।
अगेती झुलसा)- इस रोग के संक्रमण से पौधे पर काले या गहरे भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं। रोग से पौधे में संक्रमण बढ़ने से पौधे सुखकर मरने लगते हैं।
इसके रोकथाम के लिए स्वस्थ एवं रोग-प्रतिरोधी बीजों का प्रयोग करना चाहिए। इसलिए जरुरी है कि बुआई के पहले स्वस्थ बीजों का चयन करें। फसल चक्र में आपको ऐसे खेतों में सोलेनेसी कुल के पौधों का उपयोग करना चाहिए। इसके दूसरे उपाय के तौर पर मार्केट में मैंकोजेब जैसे फफूंदनाशक हैं, जिनका उचित मात्रा में प्रयोग कर आप इनसे टमाटर के पौधों का बचाव कर सकते हैं।
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ कृषि यानी अन्न, फल, एवं सब्जियों से होने वाली आय की जीडीपी में हिस्सेदारी लगभग 16% है। ऐसे में कृषि का विकास अहम् हो जाता है। हमारी कृषि खाद्य आपूर्ति के क्षेत्र में तभी बेहतर भूमिका निभा पाएगी जब कृषि को वैज्ञानिक तरीके से किया जाएगा। बहुत से किसान जानकारी के अभाव में अपने खेतों से बेहतर उत्पादन प्राप्त नहीं कर पाते हैं। हमारे इस आर्टिकल का उदेश्य किसानों की बेहतरी के लिए आवश्यक सभी जानकारी तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करनी है। आप कृषि या उससे जुड़ी अन्य टॉपिक्स पर जानकारी के लिए हमारे वेबसाइट को एक्स्प्लोर कर सकते हैं।