पोषक तत्व पौधों के विकास, फूल, फल एवं बीज निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। ये तत्व पौधों के प्रकाश संश्लेषण, प्रोटीन निर्माण, कोशिकीय विभाजन, जल एवं पोषक तत्वों के स्थानांतरण जैसे जैविक कार्यों में भाग लेते हैं। इनकी कमी से पौधे कमजोर हो जाते हैं एवं उनका जीवन चक्र प्रभावित होता है।
भारत सांस्कृतिक के साथ-साथ भौगोलिक पटल पर भी विविधताओं का देश है। यहाँ क्षेत्र के अनुसार — काली, लाल, जलोढ़, बलुई आदि कई प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं। जलवायु एवं अत्यधिक खेती के कारण अधिकतर मिट्टियों में पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है। मिट्टी के प्रकार और उनमें पोषक तत्वों की सामान्य कमी से संबंधित कुछ तथ्य नीचे दिए जा रहे हैं:
इस प्रकार भारत के प्रत्येक किसान के लिए पोषक तत्वों की जानकारी एवं उसकी कमी की समय पर पहचान और उसकी पूर्ति के लिए उपयुक्त उर्वरक की जानकारी होनी आवश्यक है। अतः यह आर्टिकल प्रत्येक भारतीय किसान के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ हम भारतीय किसानों की इसी सामान्य समस्या के समाधान हेतु तत्परता दिखाने वाले हैं।
पौधों दवारा ग्रहण की जाने वाली मात्रा के हिसाब से हम पोषक तत्वों को 3 भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं:
प्रमुख पोषक तत्व (Macronutrients): ये तत्व पौधे द्वारा सबसे अधिक मात्रा में ग्रहण किये जाते हैं, जो हैं-
द्वितीयक पोषक तत्व (Secondary nutrients): इस वर्ग में हम उन पोषक तत्वों को रखते हैं, जिन्हें पौधे द्वारा बहुत ही अल्प मात्रा में ग्रहण किये जाते हैं, जो हैं-
सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrients): इनके अंतर्गत हम उन तत्वों को रख सकते हैं, जिनका पौधे अपने विकास के लिए सूक्ष्म मात्रा में ग्रहण करते हैं, जो हैं-
किसी भी पौधे के निर्माण में 95% भाग हाइड्रोजन, कार्बन, एवं ऑक्सीजन का होता है, एवं शेष 5% भाग का निर्माण ऊपर बताये अन्य तत्वों से होता है। लेकिन सभी 16 तत्वों का किसी भी स्वस्थ फसल के लिए अहम् होता है। किसी भी एक की कमी सभी जैविक क्रियाओं को प्रभावित करती है। फसल द्वारा इनके ग्रहण की मात्रा से किसी भी पोषक तत्वों की महत्ता निर्धारित नहीं की जा सकती है। कुल मिलाकर कहें तो किसानों को बेहतर उत्पादकता की प्राप्ति के लिए अपने फसलों में ऊपर बताये सभी पोषक तत्वों की जरुरी मात्रा में उपलब्धता का ध्यान रखना अति आवश्यक है।
किसी पौधे के लिए प्रत्येक पोषक तत्व के अपने-अपने कार्य हैं, जिसे केवल वही पोषक तत्व पूरा कर सकता है। आइये जानते हैं पोषक तत्वों के कार्य के बारे में-
नाइट्रोजन- यह तत्व पौधे के विकास एवं वृद्धि में सहायक होता है। यह प्रोटीन के सभी अवयवों (Elements) के निर्माण में सहायक बनकर उपज में वृद्धिं करता है।
फास्फोरस- कोशिका विभाजन, जड़ों की वृद्धि, फूलों एवं फलों के विकास एवं फसल के पकने में सहायक होता है।
पोटैशियम- यह मंड, शर्करा एवं प्रोटीन के उत्पादन एवं प्रवाह को नियंत्रित करने के साथ पौधे की रोगों, कीड़े-मकौड़ों, एवं पाले से रक्षा कर फसल की क्वालिटी में सुधार करता है।
गंधक- यह पौधे में उपस्थित वाले सिस्टीन, सिस्टाइन, मिथियोनिन अमीनों अम्लों का जरुरी अवयव (element) है। गंधक जड़ ग्रंथियों, प्रोटीन एवं तेल के निर्माण में सहायक होता है।
कैल्सियम- यह जड़ों की वृद्धि एवं पौधे के विभिन्न अंगों की रचना एवं विकास के लिए जरुरी शर्करा एवं पानी की पूर्ति में सहायक होता है।
मैग्नीशियम- यह क्लोरोफिल का मुख्य अवयव (element) है, जो पौधे की विकास एवं उत्पादन के लिए जरुरी है।
बोरोन- यह पौधे में जटिल रासायनिक क्रियाओं एवं कोशिका विभाजन में सहायक होता है। इसके साथ ही पोटेशियम एवं कैल्सियम के अनुपात को नियंत्रित करने, न्यूक्लिक अम्ल, शर्करा और हार्मोन्स के निर्माण, एवं पौधे के नए अंगों के विकास में सहायक होता है।
लोहा- शर्करा एवं प्रोटीन संश्लेषण के साथ एंजाइम का वाहक बनकर पौधे की सुचारू श्वसन क्रिया में सहयोग करता है।
मैग्नीज- पौधे में नाइट्रोजन एवं लोहे की जैविक क्रिया प्रभावित करने के साथ एस्कोर्बिक एसिड के अवशोषण में कैटेलिस्ट का काम करता है।
तांबा- यह एंजाइम में इलेक्ट्रान को ढोने का कार्य करता है, जो पौधे में ऑक्सीडेशन एवं रिडेक्सन प्रोसेस में सहायक होते हैं।
जस्ता- पौधे में हार्मोन्स के निर्माण के साथ-साथ, रोग-प्रतिरोधी क्षमता में वृद्धि करता है। इसके साथ ही यह फास्फोरस एवं नाइट्रोजन के उपयोग में सहायक होता है।
मालिब्डेम- दलहनी फसलों में जड़ों में नाइट्रोजन के संग्रह करने वाले जीवाणुओं के कार्यों में सहायता करता है।
क्लोरिन- पौधे के रंगों को पैदा करने में सहायक होता है। इसके साथ ही यह फसलों को जल्द पकने में मदद करता है।
जब पौधे के जरुरी निश्चित मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध नहीं होने लगते हैं, तो इसके प्रभावस्वरुप पौधे की जैविक क्रियाओं पर असर पड़ता है। जिसका असर पौधे पर स्पस्ट रूप से नजर आने लगता है। चूँकि प्रत्येक पोषक तत्व के अपने अलग-अलग योगदान होते हैं, जैसा की हमनें ऊपर भी देखा, इसलिए प्रत्येक पोषक तत्व की कमी के भी अपने-अपने प्रभाव होते हैं। जिससे पौधे में अमुक पोषक तत्वों की कमी की पहचान आसानी से की जा सकती है एवं समय पर उर्वरक के प्रयोग द्वारा उन पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति की जा सकती हैं। तो आइये जानते हैं पोषक तत्व की कमी के लक्षण एवं कमी को दूर करने के उपाय के बारे में।
कमी के संकेत-
कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-
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फसलों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए पोषक तत्वों की पूर्ति आवश्यक है। उर्वरक इस कमी को पूरा करने का सबसे प्रभावी माध्यम हैं:
फसलों की उच्च गुणवत्ता एवं अधिक उत्पादन के लिए पौधों को संतुलित पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। किसानों को चाहिए कि वे समय-समय पर मिट्टी की जाँच कराएं एवं उसकी आवश्यकता के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करें। सभी किसानों की पहुँच मिट्टी जाँच लैब तक नहीं हो सकती है, उनके लिए ऊपर बताये तरीकों से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी का आकलन किया जा सकता है। इसके लिए किसानों को निरंतर पत्तियों, जड़ों एवं तनों की मोनिटरिंग करते रहने की जरुरत है।