कृषि

जानें कैसे करें फसलों में पोषक तत्वों की कमी की पहचान एवं उनका निदान

Updated on 13th May, 2025, By प्रशांत कुमार
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जानें कैसे करें फसलों में पोषक तत्वों की कमी की पहचान एवं उनका निदान
भारत में अपने सम्बद्ध क्षेत्रों के साथ कृषि आजीविका का प्रमुख श्रोत है, आज भी लगभग 70% ग्रामीण परिवार अपनी आजीविका के लिए मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। इस प्रकार भारतीय कृषि पर देश की एक बड़ी आबादी के जीवनयापन एवं खुशहाली का जिम्मा है। ऐसे में कृषि का बेहतर विकास यानी फसल की अच्छी पैदावार होनी बहुत ही आवश्यक है, जिसके लिए उर्वर मिट्टी एवं पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों का मिलना अत्यंत आवश्यक है। फसलों में पोषक तत्वों की कमी न केवल उत्पादन को प्रभावित करती है, बल्कि उपज की क्वालिटी को भी कम करती है। पौधे के विकास एवं स्वस्थ अन्न की प्राप्ति के लिए कुल 16 तत्वों की आवश्यकता होती है। जिनमें से 3 (कार्बन, हाइड्रोजन, एवं ऑक्सीजन) पानी एवं हवा से मिल जाते हैं, एवं शेष 13 तत्वों की पूर्ति भूमि एवं उर्वरक से होती है। पौधे अपना जीवन-चक्र इन तत्वों के बिना पूरा नहीं कर सकते हैं। आज हम इस आर्टिकल विशेषकर फसलों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण को जानते हुए उनकी पूर्ति के लिए कौन से उर्वरक उपयुक्त है, इस पर चर्चा करेंगें।

पोषक तत्व का फसल के लिए क्या महत्त्व है?

पोषक तत्व पौधों के विकास, फूल, फल एवं बीज निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। ये तत्व पौधों के प्रकाश संश्लेषण, प्रोटीन निर्माण, कोशिकीय विभाजन, जल एवं पोषक तत्वों के स्थानांतरण जैसे जैविक कार्यों में भाग लेते हैं। इनकी कमी से पौधे कमजोर हो जाते हैं एवं उनका जीवन चक्र प्रभावित होता है।

भारत की मिट्टी के हिसाब से पोषक तत्व का महत्त्व क्या है?

भारत सांस्कृतिक के साथ-साथ भौगोलिक पटल पर भी विविधताओं का देश है। यहाँ क्षेत्र के अनुसार — काली, लाल, जलोढ़, बलुई आदि कई प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं। जलवायु एवं अत्यधिक खेती के कारण अधिकतर मिट्टियों में पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है। मिट्टी के प्रकार और उनमें पोषक तत्वों की सामान्य कमी से संबंधित कुछ तथ्य नीचे दिए जा रहे हैं:

  • नाइट्रोजन की कमी: अधिकतर मिट्टियों में देखी जाती है।
  • फास्फोरस की कमी: विशेषकर लाल एवं जलोढ़ मिट्टी में इसकी कमी पायी जाती है।
  • पोटाश की कमी: उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसकी कमी एक सामान्य समस्या है।

इस प्रकार भारत के प्रत्येक किसान के लिए पोषक तत्वों की जानकारी एवं उसकी कमी की समय पर पहचान और उसकी पूर्ति के लिए उपयुक्त उर्वरक की जानकारी होनी आवश्यक है। अतः यह आर्टिकल प्रत्येक भारतीय किसान के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ हम भारतीय किसानों की इसी सामान्य समस्या के समाधान हेतु तत्परता दिखाने वाले हैं।

पौधे के लिए आवश्यक पोषक तत्व कौन-कौन से हैं?

पौधों दवारा ग्रहण की जाने वाली मात्रा के हिसाब से हम पोषक तत्वों को 3 भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं:

प्रमुख पोषक तत्व (Macronutrients): ये तत्व पौधे द्वारा सबसे अधिक मात्रा में ग्रहण किये जाते हैं, जो हैं-

  • नाइट्रोजन
  • फास्फोरस
  • पोटाश

द्वितीयक पोषक तत्व (Secondary nutrients): इस वर्ग में हम उन पोषक तत्वों को रखते हैं, जिन्हें पौधे द्वारा बहुत ही अल्प मात्रा में ग्रहण किये जाते हैं, जो हैं-

  • कैल्शियम
  • मैग्नीशियम
  • सल्फर

सूक्ष्म पोषक तत्व (Micronutrients): इनके अंतर्गत हम उन तत्वों को रख सकते हैं, जिनका पौधे अपने विकास के लिए सूक्ष्म मात्रा में ग्रहण करते हैं, जो हैं-

  • आयरन
  • जिंक
  • मैंगनीज
  • बोरॉन
  • तांबा
  • मोलिब्डेनम
  • क्लोरिन

किसी भी पौधे के निर्माण में 95% भाग हाइड्रोजन, कार्बन, एवं ऑक्सीजन का होता है, एवं शेष 5% भाग का निर्माण ऊपर बताये अन्य तत्वों से होता है। लेकिन सभी 16 तत्वों का किसी भी स्वस्थ फसल के लिए अहम् होता है। किसी भी एक की कमी सभी जैविक क्रियाओं को प्रभावित करती है। फसल द्वारा इनके ग्रहण की मात्रा से किसी भी पोषक तत्वों की महत्ता निर्धारित नहीं की जा सकती है। कुल मिलाकर कहें तो किसानों को बेहतर उत्पादकता की प्राप्ति के लिए अपने फसलों में ऊपर बताये सभी पोषक तत्वों की जरुरी मात्रा में उपलब्धता का ध्यान रखना अति आवश्यक है।

पौधों में पोषक तत्वों के मुख्य कार्य क्या हैं?

किसी पौधे के लिए प्रत्येक पोषक तत्व के अपने-अपने कार्य हैं, जिसे केवल वही पोषक तत्व पूरा कर सकता है। आइये जानते हैं पोषक तत्वों के कार्य के बारे में-

नाइट्रोजन- यह तत्व पौधे के विकास एवं वृद्धि में सहायक होता है। यह प्रोटीन के सभी अवयवों (Elements) के निर्माण में सहायक बनकर उपज में वृद्धिं करता है।

फास्फोरस- कोशिका विभाजन, जड़ों की वृद्धि, फूलों एवं फलों के विकास एवं फसल के पकने में सहायक होता है।

पोटैशियम- यह मंड, शर्करा एवं प्रोटीन के उत्पादन एवं प्रवाह को नियंत्रित करने के साथ पौधे की रोगों, कीड़े-मकौड़ों, एवं पाले से रक्षा कर फसल की क्वालिटी में सुधार करता है।

गंधक- यह पौधे में उपस्थित वाले सिस्टीन, सिस्टाइन, मिथियोनिन अमीनों अम्लों का जरुरी अवयव (element) है। गंधक जड़ ग्रंथियों, प्रोटीन एवं तेल के निर्माण में सहायक होता है।

कैल्सियम- यह जड़ों की वृद्धि एवं पौधे के विभिन्न अंगों की रचना एवं विकास के लिए जरुरी शर्करा एवं पानी की पूर्ति में सहायक होता है।

मैग्नीशियम- यह क्लोरोफिल का मुख्य अवयव (element) है, जो पौधे की विकास एवं उत्पादन के लिए जरुरी है।

बोरोन- यह पौधे में जटिल रासायनिक क्रियाओं एवं कोशिका विभाजन में सहायक होता है। इसके साथ ही पोटेशियम एवं कैल्सियम के अनुपात को नियंत्रित करने, न्यूक्लिक अम्ल, शर्करा और हार्मोन्स के निर्माण, एवं पौधे के नए अंगों के विकास में सहायक होता है।

लोहा- शर्करा एवं प्रोटीन संश्लेषण के साथ एंजाइम का वाहक बनकर पौधे की सुचारू श्वसन क्रिया में सहयोग करता है।

मैग्नीज- पौधे में नाइट्रोजन एवं लोहे की जैविक क्रिया प्रभावित करने के साथ एस्कोर्बिक एसिड के अवशोषण में कैटेलिस्ट का काम करता है।

तांबा- यह एंजाइम में इलेक्ट्रान को ढोने का कार्य करता है, जो पौधे में ऑक्सीडेशन एवं रिडेक्सन प्रोसेस में सहायक होते हैं।

जस्ता- पौधे में हार्मोन्स के निर्माण के साथ-साथ, रोग-प्रतिरोधी क्षमता में वृद्धि करता है। इसके साथ ही यह फास्फोरस एवं नाइट्रोजन के उपयोग में सहायक होता है।

मालिब्डेम- दलहनी फसलों में जड़ों में नाइट्रोजन के संग्रह करने वाले जीवाणुओं के कार्यों में सहायता करता है।

क्लोरिन-  पौधे के रंगों को पैदा करने में सहायक होता है। इसके साथ ही यह फसलों को जल्द पकने में मदद करता है।

पौधों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण एवं उनका निदान क्या है?

जब पौधे के जरुरी निश्चित मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध नहीं होने लगते हैं, तो इसके प्रभावस्वरुप पौधे की जैविक क्रियाओं पर असर पड़ता है। जिसका असर पौधे पर स्पस्ट रूप से नजर आने लगता है। चूँकि प्रत्येक पोषक तत्व के अपने अलग-अलग योगदान होते हैं, जैसा की हमनें ऊपर भी देखा, इसलिए प्रत्येक पोषक तत्व की कमी के भी अपने-अपने प्रभाव होते हैं। जिससे पौधे में अमुक पोषक तत्वों की कमी की पहचान आसानी से की जा सकती है एवं समय पर उर्वरक के प्रयोग द्वारा उन पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति की जा सकती हैं। तो आइये जानते हैं पोषक तत्व की कमी के लक्षण एवं कमी को दूर करने के उपाय के बारे में।

नाइट्रोजन

कमी के संकेत-

  • पौधे की विकास की प्रक्रिया धीमी
  • कल्लों की संख्या सामान्य से कम
  • पुरानी पत्तियों का रंग पीला होना
  • फसल गुणवत्ता एवं उपज में कमी

कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • यूरिया
  • अमोनिया सल्फेट
  • एन.पी.
  • एन.पी.के.
  • कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट

फास्फोरस

कमी के संकेत-

  • पौधे की वृद्धि का रुक जाना
  • जड़ों का विकास रुक जाना
  • पुरानी पत्तियां नीले हरे रंग की होना
  • फसल का देर से पकना

कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • सिंगल सुपर फास्फेट
  • डाई अमोनियम फास्फेट
  • राक फास्फेट
  • एन.पी.
  • एन.पी.के.

पोटैशियम

कमी के संकेत-

  • पुरानी पत्तियों के नोकवाले भाग का रंग भूरा पड़ना
  • तने का कमजोर होना
  • धीमी वृद्धि
  • दाने का सिकुड़ जाना
  • पत्तियों का जल्द गिरना

कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • सल्फेट ऑफ़ पोटाश
  • सल्पो मैग
  • एन.पी.के.
  • म्यूरेट ऑफ़ पोटाश

गंधक

कमी के संकेत-

  • तने का कठोर एवं भंगुर होना
  • नई पत्तियां पीली या हल्के हरे रंग का होना

कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • अमोनियम सल्फेट
  • सिंगल सुपर फास्फेट
  • अमोनियम फास्फेट सल्फेट
  • जिप्सम
  • पायराइट

कैल्सियम

कमी के संकेत-

  • तने का कमजोर हो जाना
  • पुष्प गिरने लगे
  • मूंगफली से दाने का कम होना

कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • चूना एवं कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट
  • सिंगल सुपर फास्फेट
  • बेसिक स्लेग
  • जिप्सम

मैग्नीशियम

कमी के संकेत-

  • पत्तियों में हरे रंग की कमी होना
  • पत्ती की शिरा के बीच में पीलापन
  • टहनियों का कमजोर होना

कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • डोलोमाइट
  • सल्पो मैग
  • मैग्नीशियम सल्फेट

बोरोन

कमी के संकेत-

  • पौधे की वृद्धि का रुक जाना
  • पत्तियों का मोटा होना
  • फूल एवं कलियों का गिरना
  • फल एवं बीज का विकास रुक जाना
  • जड़ वाली फसल में ब्राउन हार्ट रोग हो जाना

कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • सौल्यूवर या सुहागा का प्रयोग
  • बोरेक्स

लोहा

कमी के संकेत-

  • पत्तियों का रंग लाल हो जाना
  • नई पत्तियों के शिराओं में हरे रंग का अभाव देखा जाना
  • धान की नर्सरी का रंग पीला होना

कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • आयरन चिलेटेड
  • फेरस सल्फेट

मैग्नीज

कमी के संकेत-

  • नई पत्तियों का रंग लाल धूसर या पीला धूसर होने लगना
  • शिराएँ का हरा होना
  • पत्ती के किनारे का भाग एवं शिरा के मध्य भाग का हरितिमाहीन हो जाना

कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • मैगनीज सल्फेट

तांबा

कमी के संकेत-

  • नई पत्तियों का एक साथ गहरे पीले रंग का हो जाना
  • पत्तियों का सूखकर गिरने लग जाना
  • खाद्यान्न फसलों के गुच्छों के शीर्ष में दानों का अभाव होना

कमी दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • कॉपर सल्फेट (तूतीया या नीला थोथा)

जस्ता

कमी के संकेत-

  • पत्तियों पर सफ़ेद या पीले रंग की धारियों का उभरना जो बाद में कांसा के रंग या भूरे रंग में बदल जाता है
  • पौधे का विकास रुक जाना
  • बालियों का देर से निकलना

कमी दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • चिलेटेड जिंक
  • कार्बनिक खाद
  • जिंक सल्फेट

मालिब्डेम

कमी के संकेत-

  • नई पत्तियों का सूख जाना
  • मध्य शिरा को छोड़कर पूरे पत्तियों पर सूखे धब्बे दिखाई देना

कमी दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • अमोनियम मालिब्डेट

क्लोरिन

कमी के संकेत-

  • फसलों का देरी से विकास एवं पकना

कमी दूर करने के लिए उपयुक्त उर्वरक-

  • कार्बनिक खादों का प्रयोग

पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति के लिए उर्वरक का महत्त्व क्या है?

फसलों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए पोषक तत्वों की पूर्ति आवश्यक है। उर्वरक इस कमी को पूरा करने का सबसे प्रभावी माध्यम हैं:

  • उर्वरक फसलों को आवश्यक तत्वों की शीघ्र आपूर्ति करते हैं।
  • समय पर संतुलित उर्वरक के प्रयोग से उपज में 20-50% तक वृद्धि हो सकती है।
  • उर्वरकों के माध्यम से मिट्टी की उत्पादकता को बनाए रखा जा सकता है।

ट्रैक्टरकारवां की ओर से

फसलों की उच्च गुणवत्ता एवं अधिक उत्पादन के लिए पौधों को संतुलित पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। किसानों को चाहिए कि वे समय-समय पर मिट्टी की जाँच कराएं एवं उसकी आवश्यकता के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करें। सभी किसानों की पहुँच मिट्टी जाँच लैब तक नहीं हो सकती है, उनके लिए ऊपर बताये तरीकों से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी का आकलन किया जा सकता है। इसके लिए किसानों को निरंतर पत्तियों, जड़ों एवं तनों की मोनिटरिंग करते रहने की जरुरत है।

प्रशांत कुमार
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प्रशांत कुमार
प्रशांत कुमार ट्रैक्टर एवं कृषि क्षेत्र में रुचि रखने वाले एक अनुभवी हिंदी कंटेंट एक्सपर्ट हैं। लेखनी के क्षेत्र में उनका 12 वर्षों से अधिक का अनुभव है। उन्होंने इससे पूर्व में विभिन्न मीडिया हाउसेस के लिए काम किया है। अपने खाली समय में, वे कविता लिखना, पुस्तकें पढ़ना एवं ट्रेवल करना पसंद करते हैं।
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