वैसे तो ये गर्मी के मौसम की फसल है, लेकिन इसे किसानों द्वारा वर्ष-भर उगाया जा सकता है। आज नई तकनीकों, बीज की उपलब्ध विभिन्न किस्मों ने खीरे की फसल को उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्ण क्षेत्रों में खीरे को सफलतापूर्वक उगाया जाना संभव बना दिया है। इसकी खेती के लिए न्यूनतम 20 डिग्री सेल्सियस एवं अधिकतम 40 डिग्री सेल्सियम का तापमान आइडियल माना जाता है। अगर तापमान 25 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियम में मेंटेन रखा जाए तो फसल की पैदावार बढ़ जाती है।
खीरे की फसल के लिए बलुई दोमट/रेतीली मिटटी उपयुक्त मानी जाती है। ध्यान रहे इसकी खेती वैसी भूमि पर ही की जानी चाहिए, जहाँ उचित जलनिकासी का प्रबंधन किया गया हो ताकि जलजमाव की समस्या ना हो। खीरे की फसल के लिए कार्बन की मात्रा वाली भूमि अधिक उपयुक्त होती है, जिसका पीएच मान 6।5 से 7 के बीच हो।
कृषि विज्ञान तेजी से विकास कर रहा है, हमारे कृषि वैज्ञानिकों ने भारतीय जलवायु के अनुकूल बहुत सी हाइब्रिड किस्मों का भी विकास किया है। आप लेटेस्ट हाइब्रिड किस्म की जानकारी प्राप्त करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पोर्टल पर उपलब्ध ‘बीज उपलब्ध’ सेक्शन में दिए संपर्क नंबर पर कॉल कर सकते हैं। हम आइये आपको खीरे की आम प्रचलित किस्मों की जानकारी देते हैं। जो उपज के साथ-साथ देश की जलवायु के भी अनुकूल है।
स्वर्ण अगेती- जैसा नाम से ही पता चलता है, यह खीरे की अगेती किस्म है, जिसकी तुड़ाई सबसे जल्दी की जा सकती है। बुआई के 40 से 42 दिनों के बाद ही इसका फल तोड़ने लायक परिपक्व होने लगता हैं। ये आकार में मध्यम होने के साथ, इसके फल क्रिस्पी एवं हल्के हरेपन लिए होते हैं। स्वर्ण अगेती की बुआई फरवरी से जून के महीने तक की जा सकती है। ये उत्पादन की दृष्टि से उन्नत बीज होता है, इसके द्वारा सामान्यतः प्रति पौधे 15 खीरे प्राप्त होते हैं, जिसकी तोड़ाई किसानों द्वारा 5 से 6 दिनों के अन्तराल में की जा सकती है।
स्वर्ण पूर्णिमा- स्वर्ण अगेती की तुलना में स्वर्ण पूर्णिमा के फल विकसित होने में थोड़ा अधिक समय लेता है। यह मध्यम अवधि में तैयार होने वाली खीरे की किस्म है, जिसकी तुड़ाई फसल की बुआई के 45 से 47 दिनों के बाद शुरू हो जाती है। इसके फल हल्के हरे, लम्बे, सीधे एवं ठोस होते हैं। इसकी तुड़ाई 2 से 3 दिन के अन्तराल में करनी चाहिए।
पंत-संकर खीरा-1- ऊपर बताये दोनों किस्मों की अपेक्षा इस किस्म से उगे फसल के परिपक्व होने का समय अधिक है। इसकी बुआई से लेकर तुड़ाई तक के समय का अन्तराल 50 दिनों का होता है। इसके फल हरेपन लिए मध्यम आकार के होते हैं। यह संकर प्रजाति, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों एवं मैदानी भागों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसकी तुड़ाई 2 से 4 दिन के अन्तराल में करनी चाहिए।
क्षेत्र एवं जलवायु के हिसाब से खीरे की खेती का समय अलग-अलग है। मैदानी क्षेत्रों में बुआई का उपयुक्त समय फरवरी से जून के प्रथम सप्ताह तक है। भारत के दक्षिण क्षेत्रों में इसकी बुआई जून से लेकर अक्टूबर तक करते हैं। वहीं उत्तर भारत के पर्वतीय भागों में इसकी बुआई का उपयुक्त समय अप्रैल से मई के बीच है।
किसी भी बीज के उपयुक्त विकास के लिए मिट्टी की बेहतर तरीके से तैयारी करनी आवश्यक है, क्योंकि फसल अपने स्वस्थ विकास के लिए मिट्टी से ही सभी जरुरी पोषक तत्व लेते हैं। मिट्टी अगर नरम/भुरभुरी हो तो मिट्टी में जड़ का विकास भी बेहतर तरीके से हो पाता है। इसीलिए खीरे की खेती के लिए भी मिट्टी की बेहतर तैयारी के लिए सबसे पहले इसे कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन बार जुताई करनी आवश्यक है। पहली जुताई के बाद इसमें पुराने गोबर की खाद डालनी चाहिए, एवं उसके बाद पुनः दूसरी जुताई करनी चाहिए, ताकि खाद पूरी तरह से मिट्टी में मिल सके। इसके बाद पूरे खेत की सिंचाई करके, कुछ दिनों तक खेत को ऐसे ही छोड़ देनी चाहिए। इसके बाद पुनः तीसरी बार जुताई करनी चाहिए। इस पूरे प्रोसेस में मिट्टी पूरी तरह एक स्वस्थ बीज के विकास के लिए अनुकूल हो जाती है।
मिट्टी की तैयारी के बाद सबसे पहले खेत में 2-3 सेंटीमीटर गहरी क्यारियां तैयार कर लें। बीजों को कतारों में 60 से 75 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाएं। बीजों को हल्के से मिट्टी से ढककर हल्के पानी से सिंचाई करें। यदि बीजों का अंकुरण सही हो, तो साथ दिनों में पौधे उगने लगेंगे।
केवल खीरा की बुआई कर देने तक ही किसानों का काम ख़त्म नहीं हो जाता है। बुआई एवं बेलों के सवस्थ विकास से लेकर फल तुड़ाई तक आपको विशेष ध्यान रखने की जरुरत है। सबसे पहले ध्यान यह रखना है, आपको किसी प्रकार के अवांछित पौधे एवं खर-पतवार को पनपने नहीं देना है। यानी समय-समय पर आपको निराई-गुड़ाई करते रहनी है। इसके साथ ही आपको ये भी ध्यान रखना है कि किसी प्रकार के रोग का फसल के तने, फूलों या फलों में संक्रमण ना हो। इसके साथ ही कीटें भी फसलों को नुकसान पहुंचाती है।
कद्दू का लाल कीट (red pumpkin beetle)- इस कीट को कई जगह सुंडी के नाम से भी जाना जाता है। ये दिखने में लाल रंग के होते हैं, जो खीरे के विकास के दौरान पत्तियों को खाते हैं। ये उन पत्तों का ज्यादा नुकसान पहुँचाने का काम करते हैं, जो विकास की प्रारंभिक अवस्था में होती है। इसलिए पौधे के विकास के प्रारंभिक चरण में इन कीटों के आक्रमण की निगरानी रखनी है। प्रौढ़ पत्तियों को ये नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
इसके रोकथाम के लिए सुबह ओस पड़ने के समय पौधों पर राख का छिड़काव कर देना चाहिए। इसके साथ ही जैविक विधि एवं कीटनाशी का प्रयोग कर भी आप इन कीटों से फसल का बचाव कर सकते हैं।
खीरे का फतंगा- ये एक प्रकार का उड़ने वाला कीट है, जिसके आगे के पंख सफ़ेद होते हैं, एवं किनारे पर ट्रांसपेरेंट भूरे धब्बे पाए जाते हैं। इस कीट का मुख्य भोजन पत्ती के क्लोरोफिल भाग है, इसके साथ ही ये फूल एवं फलों को भी अपना भोजन बनाते हैं।
आप समय-समय पर इन कीटों को इकठ्ठा करके नष्ट कर सकते हैं। दूसरे उपाय में आप बैसिलस थ्रूजेंसिस किस्म कुर्सटाकी का छिड़काव एक या दो बार 10 दिनों के अंतराल पर एक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कर सकते हैं।
कीटों के साथ-साथ आपको खीरे की फसलों में लगने वाले नीचे दिए सामान्य रोग से बचाव करनी चाहिए।
वायरस से होने वाले रोग- यह मोजैक वायरस से होता है, जो खीरे की फसल के पत्तियों एवं फलों को संक्रमित करता है। इस वायरस रोग की पहचान है, पत्ती का पीला पड़ जाना एवं पीले धब्बे का निशान पड़ जाना। इस वायरस के संक्रमण की वजह से फल छोटे और टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। इसके बचाव के लिए एक उपाय तो ये है कि इससे प्रभावित पौधे को जड़ से उखाड़ दें, दूसरा इसके लिए बाजार में उपलब्ध रासायनिक कीटनाशकों का भी प्रयोग कर सकते हैं।
रूट रॉट डिजीज- यह फफूंद से होने वाला रोग है, जो पौधे की जड़ों को प्रभावित कर करता है। इस रोग की वजह से पौधे की जड़ें सड़ने या सूखने लगती है। जिससे पौधे जड़ों के माध्यम से आवश्यक पोषक तत्व नहीं ग्रहण कर पाते हैं। इस रोग का शुरूआती लक्षण है पत्तियों का पीला पड़ जाना।
फसल इस रोग से प्रभावित ना हो, इसके लिए बुआई के पूर्व बीजों का उपचार करना चाहिए। इसके लिए मार्केट में उपलब्ध फफूंदनाशक का भी प्रयोग कर सकते हैं।
पाउडरी मिल्ड्यू रोग- यह एक फंगस जनित रोग है, जिसके लक्षण पौधे के पत्तियों एवं तनों पर दिखाई देते हैं। इस रोग के होने से पौधे के पत्तियों एवं तनों पर पाउडर जैसा पदार्थ इकठ्ठा होने लगता है। रोग के अधिक बढ़ने पर सारे पौधे के तने एवं पत्तियां पाउडर से ढक जाते हैं।
इस रोग से फसल संक्रमित ना हो, इसके लिए किसानों को बीजोपचार करके ही बुआई करनी चाहिए। इसके साथ ही बाजार में विभिन्न प्रकार के फंगसनाशी रसायन उपलब्ध होते हैं, जिनका प्रयोग कर इस रोग से बचाव किया जा सकता है।
बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जिनके पास बड़े पैमाने पर खेती के लिए जमीन नहीं होती है, लेकिन उनकी रूचि किचेन गार्डनिंग की होती है। यानी वे अपने घरों के आहाते या फिर अपने घर के छतों पर खेती करना चाहते हैं। तो बता दें खीरा ऐसा फसल है, जिसे आप छोटे पैमाने पर अपने घरों में उपलब्ध जमीन या फिर घर के छतों या बालकनी में भी उपजा सकते हैं। इसके लिए आपको सामान्य से बड़े गमले या फिर प्लास्टिक के बोरे में खाद मिली हुयी मिट्टी लेनी है। आज बहुत से ऐसे ऑनलाइन साइट्स उपलब्ध हैं, जहाँ से आप ये ऑनलाइन मंगा सकते हैं। इसमें बीज की बुआई कर आप इससे छोटे पैमाने पर खीरा उपजा सकते हैं। इसके लिए धूप का आना जरुरी है, क्योंकि यह In-door फसल नहीं है। इसके साथ ही समय-समय पर आपको सिंचाई भी करनी आवश्यक है।
हमनें इस आर्टिकल में खीरे की खेती से सम्बन्धित सभी महत्वपूर्ण जानकारी को समेटने का प्रयास किया है. हमारा उद्देश्य है किसानों को खीरे की खेती के वैज्ञानिक तरीके से अवगत कराना, ताकि अगर कोई किसान या फिर खेती के इच्छुक सामान्य जन लाभकारी खेती करना चाहते हैं, तो वे खीरे की खेती कर सकते हैं. अगर आप सही समय पर बुआई, उचित किस्म का चयन, आवश्यक सिंचाई के साथ-साथ रोग एवं कीटों से फसल की रक्षा करते हैं, तो आप खीरे की बेहतर उपज एवं इससे बेहतर प्रॉफिट कमा सकते हैं।