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परवल की वैज्ञानिक खेती: जानें इसे लगाने का सही समय एवं तरीका

Updated on 04th April, 2025, By प्रशांत कुमार
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परवल की वैज्ञानिक खेती: जानें इसे लगाने का सही समय एवं तरीका
किचन के व्यंजनों की बात हो और परवल से बनें डिसेस का नाम ना आए, तो जायके में कुछ अधूरापन रह ही जाता है। यह भारतीय किचन में शामिल बहुत ही पौष्टिक एवं औषधीय गुणों से भरपूर शब्जी है। पचने में आसान होने के साथ-साथ यह शीतल, पित्तनाशक, यूरिन-सम्बन्धी बिमारियों को भी ठीक करने में सहयोगी होता है। इसके साथ ही इसका अचार एवं मिठाई बनाने में भी उपयोग किया जाता है। यह विटामिन, कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन का बेहतरीन श्रोत है। वैज्ञानिकों की मानें तो यह देशी शब्जी है, यानी इसका उदगम स्थल भारत है, इस मायने में ये भारतीय जलवायु के बहुत ही अनुकूल है। आज हम इस आर्टिकल में परवल का उत्पादन, परवल का महत्त्व, परवल की उन्नत किस्में, परवल के लिए उपयुक्त जलवायु सहित परवल की खेती करने की पूरी वैज्ञानिक प्रक्रिया की जानकारी देने वाले हैं, ताकि अगर परवल की खेती करना चाहते हैं, तो इस आर्टिकल से आपको गाइडेंस मिल सके।

परवल का उत्पादन

कद्दू कुल के इस शब्जी को आमतौर पर खीरा, तोरी एवं लौकी जैसी बेल वाली सब्जियों के समान उगाया जाता है। परवल का उत्पादन प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा जैसें भारतीय राज्यों में किया जाता है।

परवल का क्या महत्त्व है?

स्वास्थ्य की दृष्टि से-

  • परवल पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जिसमें विटामिन C, विटामिन A, खनिज तत्व एवं फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो शरीर के लिए बेहद लाभकारी होते हैं।
  • यह पाचन तंत्र को ठीक रखने, शरीर में पानी की कमी को दूर करने एवं त्वचा की सेहत के लिए फायदेमंद माने जाते है।
  • परवल का सेवन सुगर के मरीजों के लिए बेहतर माना जाता है, क्योंकि यह ब्लड सुगर के लेवल को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है।
  • इसके अलावा, परवल में एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं, जो शरीर को सेहतमंद बनाए रखते हैं।

आर्थिक दृष्टि से-

  • परवल की खेती के लिए अत्यधिक पूंजी निवेश की आवश्यकता नहीं होती है, जिसे छोटे किसान भी आसानी से वहन कर सकते हैं।
  • एक बार उगाने के बाद परवल से लगातार 10 से 12 महीने तक तुड़ाई की जा सकती है, जिससे किसानों के आय के स्रोत में निरंतरता बनी रहती है।
  • बाजार में परवल की अच्छी कीमत मिलती है, जो इसे किसानों के लिए आर्थिक रूप से बेहतर शब्जी बनाता है।
  • परवल का निर्यात कई देशों में किया जाता है, जिससे यह भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए विदेशी मुद्रा अर्जन का एक स्रोत बन सकता है।

परवल की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी एवं जलवायु

परवल की खेती के लिए सामान्यतः गर्म एवं आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है। इसकी वृद्धि के लिए 25°C से 35°C तक का तापमान आइडियल होता है। परवल की खेती के लिए हल्की नमी की आवश्यकता होती है, लेकिन पानी जमा होने से बचाना चाहिए। वहीं मिटटी में, परवल की खेती के लिए बलुई दोमट या जैविक पदार्थों से भरपूर मिटटी उपयुक्त होती है। नदी किनारे की जलोढ़ मिट्टी बेस्ट होती है। जल निकासी वाली मिटटी परवल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

परवल की उन्नत किस्में कौन-कौन सी हैं?

काशी सुफल- यह किस्म उत्तर प्रदेश एवं बिहार की मिटटी एवं जलवायु के अनुसार उपयुक्त मानी जाती है। इस किस्म के फल सफ़ेद धारीदार के साथ हल्के हरे रंग के होते हैं। इस किस्म के परवल मिठाई बनाने के लिए सबसे उपयुक्त माने जाते हैं।

काशी अलंकार- परवल की यह किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड प्रदेश में खेती के लिए उपयुक्त है। यह अधिक उपज वाली किस्म है। इस किस्म के फल हल्के हरे रंग के होते हैं। इसकी किस्म की एक खासियत है कि इनके फलों में बहुत ही मुलायम बीज होता है।

स्वर्ण रेखा: इसके फल लम्बे धारीदार हरे रंग के होते हैं। काशी अलंकार के सामान ही इस किस्म के फलों का बीज मुलायम होता है।

स्वर्ण अलौकिक: इसका रंग हल्का हर होता है एवं यह मिठाई बनाने के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।

परवल लगाने का उपयुक्त समय एवं विधि क्या है?

स्थान विशेष की जलवायु के अनुसार परवल की रोपाई का समय भिन्न-भिन्न स्थानों पर अलग-अलग होता है। मैदानी क्षेत्रों में परवल की रोपाई जुलाई से अक्टूबर तक एवं दियारा क्षेत्रों में सितंबर से अक्टूबर तक मानी जाती है।

परवल की खेती के लिए सबसे पहले भूमि का चुनाव आवश्यक है। इसके लिए भूमि ऊँची होनी चाहिए ताकि फसल के पूरी जीवनकाल में पानी जमाव की समस्या ना आए। अगर बारिश वाला प्रदेश हो, तो वहां समतल खेतों में भी ऊँचे-ऊँचें थाले या मेढ़ बनाकर फसल लगाने चाहिए, ताकि जमीन में पानी जमाव की समस्या ना आए। परवल को 3 तरीके से लगाया जा सकता है, जो निम्न है:

  • बीज द्वारा
  • जड़ों की कलम द्वारा
  • सीधे लता द्वारा

फसल लगाने की उपर्युक्त बताये गए तरीकों में पहली दो विधियाँ कारगर नहीं है। बीज को सीधे लगाने से जो पौधे निकलते हैं, उसमें से लगभग 60 से 80 प्रतिशत नर पौधे होते हैं। उल्लेखनीय है कि मादा पौधे में फल आता है, इस प्रकार पौधे की बहुत बड़ी संख्या हमारे काम की नहीं होती है। 10 मादा में केवल 1 नर पौधे की जरुरत होती है। इस प्रकार यह विधि लाभदायक नहीं है। जड़ों की कलम वाली विधि से पौधे तो जल्दी बढ़ते हैं, लेकिन इसकी एक समस्या है, जड़ वाली कलमों का उपलब्ध ना होना। तीसरी विधि ही सबसे ज्यादा कारगर मानी जाती है, जिसके तहत सीधे लता को गड्ढे में शोधित मिटटी के साथ लगाया जाता है। आप वैसे किसान जो पहले से परवल की खेती करते हैं, उनसे सीधे लता खरीद सकते हैं, एवं अपने खेतों में इसकी रोपाई कर सकते हौं,  इसकी बाजार मूल्य सामान्यतः 7 से 8 रूपये मीटर की होती है।

नए पौधे का विकास उचित तरीके से हो सके, और पानी के अधिक संपर्क में परवल की बेलियाँ न आ सके इसके लिए दो तरह के तरीके अपनाए जाते हैं। पहली विधि में जमीन पर पैरा बिछाए जाते हैं, जिसके लिए फसल अवशेष के डंठल का प्रयोग किया जाता है। ऐसा करने से परवल की बेलियाँ सीधे जमीन के संपर्क में नहीं आती है एवं नमी का उचित स्तर बरकरार रहता है। दूसरे तरीके में बांस की 6 से 7 फीट की बल्लियों का प्रयोग कर ऊँचाई पर मचान बनाए जाते हैं।

परवल लगाने के लिए मिटटी की तैयारी कैसे करें?

  • किसानों को मई-जून महीने में पहली जुताई कर खेत को खुला छोड़ देना चाहिए।
  • वर्षा शुरू होने पर 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए।
  • खेत जुताई के अंतिम समय भूमि के आकार के हिसाब से अच्छी तरह से सड़ी हुयी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खेत में मिलाना चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त रासायनिक खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, तथा पोटाश की उपयुक्त मात्रा खेत की अंतिम जुताई के साथ खेत में डालनी चाहिए।
  • परवल की लता लगाने के लिए बनाए गए प्रत्येक गड्ढे में 100 ग्राम नीम की खली या 5 ग्राम फ्यूराडान डालना चाहिए ताकि दीमक या मिट्टी में होने वाले अन्य कीट मर जाए।

परवल लगाने के बाद आवश्यक देखभाल

परवल के फसल की निरंतर देखभाल करनी आवश्यक है। रोपाई के बाद से फसल लगने तक 4 से 5 बार निकाई गुड़ाई करनी आवश्यक है, ताकि लताओं की वृद्धि हो सके। इसके साथ ही परवल की बेलों की देखभाल में नियमित पानी देना, बेलों को सहारा देना, खरपतवारों की सफाई एवं आवश्यकतानुसार समय-समय पर उर्वरकों का उपयोग शामिल है। शुरुआत में पानी की अधिक आवश्यकता होती है, लेकिन परवल के पौधों को अधिक पानी जमा होने से बचाना चाहिए। इसके अलावा, बेलों को धूप से बचाने के लिए किसी प्रकार की छांव का इंतजाम भी किया जा सकता है। इसके साथ ही हानि पहुँचाने वाले कीटों से भी परवल के बेलों की रक्षा करनी होगी।

परवल की तुड़ाई एवं उपज

मैदानी क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल महीने में फल आना शुरू हो जाता है। वहीँ नदी के किनारे वाले दियारा क्षेत्रों में पौधे पर फल फरवरी में ही नाने लगते हैं। फल के आने के 15 से 16 दिनों के बाद इसकी तुड़ाई की जा सकती है। ध्यान रहे फल की समय से तुड़ाई करते रहनी चाहिए, एक तो इससे आपको निरंतर आमदनी होते रहेंगी, दूसरी इससे अधिक संख्या में फल लगते हैं। यानी फल की तुड़ाई फसल पैदावार को बढ़ाने का काम करते हैं।

परवल की अच्छी फसल के लिए नर एवं मादा पौधे का संतुलन जरुरी

परवल में नर एवं मादा पुष्प अलग अलग पौधे में लगते हैं, इसलिए बेहतर उपज के लिए जरुरी है नर एवं मादा पुष्प वाले पौधे का संतुलन होना। फसल के उपयुक्त विकास के लिए 10 मादा पौधे में कम से कम एक नर पौधे का होना अति आवश्यक है।

ट्रैक्टरकारवां की और से

हमनें इस आर्टिकल में परवल की खेती से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा है जो किसान परवल की खेती करना चाहते हैं, वे इस लेख के माध्यम से जरुरी जानकारी प्राप्त कर पाएंगें।  परवल की वैज्ञानिक खेती एक लाभकारी व्यवसाय हो सकता है यदि उचित तरीके से एवं सही समय पर इसे उगाया जाए। सही जलवायु, मिटटी, देखभाल एवं सही किस्म का चुनाव इसे एक सफल कृषि व्यवसाय बना सकती हैं।

प्रशांत कुमार
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प्रशांत कुमार
प्रशांत कुमार ट्रैक्टर एवं कृषि क्षेत्र में रुचि रखने वाले एक अनुभवी हिंदी कंटेंट एक्सपर्ट हैं। लेखनी के क्षेत्र में उनका 12 वर्षों से अधिक का अनुभव है। उन्होंने इससे पूर्व में विभिन्न मीडिया हाउसेस के लिए काम किया है। अपने खाली समय में, वे कविता लिखना, पुस्तकें पढ़ना एवं ट्रेवल करना पसंद करते हैं।
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