चना भारत की एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जिसे मुख्यतः रबी के मौसम में उगाया जाता है। हमारे भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होने के साथ-साथ इसके फली एवं तने का प्रयोग पशुओं के चारे के तौर पर भी किया जाता है. चना प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्रोत होता है. देश में बड़े पैमाने पर इसकी खपत होने के साथ-साथ निर्यात भी किया जाता है. इस प्रकार यह देश की कृषि अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसके लिए चने की फसल का बेहतर उत्पादन जरुरी है. और यह तभी संभव है जब चने की बुआई से लेकर कटाई तक इसकी बेहतर देखभाल की जाए. चने की खेती में अनेक कीटों का प्रकोप देखा जाता है, जो फसल की उपज को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए जरुरी है इन हानिकारक कीटों की पहचान कर समय पर नियंत्रण के उपाय करना. आज हम इस आर्टिकल में चने की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों की पहचान के तरीके, कीटों के जीवन-काल, एवं होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी प्रदान कर उनके प्रभावी नियंत्रण के उपाय के बारे में चर्चा करने वाले हैं.
चना के जड़, तने एवं फली पर आक्रमण कर नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख कीटें निम्न हैं:
यह कीट सबसे अधिक हानिकारक माना जाता है। वयस्क कीट जिसे पतिंगा कहा जाता है, 30 से 36 मिलीमीटर चौड़े पंख वाले होते हैं, जिसके शरीर की लम्बाई 14 से 18 मिलीमीटर होती है. इसके अगले पंख में धारियां होती है एवं पंख में ऊपर की ओर किडनीनुमा विभिन्न आकार के काले धब्बे बने होते हैं. वहीँ इसके निचले पंख सफ़ेद एवं हल्के होते हैं. इस कीट को ऊपर से देखने पर ये भूरे पीले या हल्के पीले भूरे रंग के दीखते हैं.
मादा कीट अपने पूरे जीवनकाल में 500 से 750 तक अंडे देने की क्षमता रखती है, जिनसे 4 से 6 दिन में बच्चे (इल्ली) निकलते हैं. इसके बच्चे यानी इल्लियों का जीवनकाल 15 से 28 दिन का होता है. अपने पूरे जीवन काल में यह 5 बार केंचुल बदलती है.
कीट के बच्चे अपना आहार चने के मुलायम तनों एवं पत्तियों को बनाते हैं. जब पौधे में फली आने लगती है, तो फिर ये फली को छेदकर अन्दर के दाने को खा जाती है.
फली छेदक कीटों को नियंत्रित करने के लिए कृषिगत, यांत्रिक, जैविक एवं रासायनिक उपाय अपनाए जा सकते हैं:
यह एक प्रकार का बहुभक्षी कीट है, जो सबसे अधिक हानिकारक माना जाता है, जो सफ़ेद एवं मटमैले रंग का होता है। ये कीट सामाजिक संरचना लिए होते हैं, इसलिए इसे सोशल इन्सेक्ट माना जाता है. ये कामगार, राजा, रानी जैसे विभिन्न जातियों में बटें होते हैं.
रानी दीमक अपने पूरे जीवन-काल में 30 हजार तक अंडे देने की क्षमता रखती है. अंडे परिपक्व हो जाने के बाद उससे अर्भक निकलते हैं. 6 से 8 माह के बाद ये अर्भक वयस्क बन जाते हैं.
इसमें एक कामगार/श्रमिक वर्ग का दीमक होता है, यही फसल को नुकसान पहुंचाता है. जड़ या तना को छेदकर या खुरचकर खाता जाता है, जिससे पौधे सूखने लगते हैं एवं चने के उत्पादन में 30–60% तक की गिरावट आ सकती है।
दीमक को नियंत्रित करने के लिए कृषिगत प्रैक्टिस में कुछ बदलाव लाने के साथ-साथ यांत्रिक, जैविक, एवं रासायनिक उपाय अपनाने चाहिए.
यह हरे रंग का होता है, जिसके शरीर पर पतली रेखा बनी होती है. यह अपने पीठ कूबड़ बना-बना कर यानी पीठ को उठा-उठाकर चलता/रेंगता है. इसी चलने के तरीके के कारण इस कीट को सेमीलूपर नाम दिया गया है.
सेमीलूपर की मादा कीट अपने पूरे जीवन-काल में 400 से 500 तक अंडे देने की क्षमता रखती है. ये अंडे समूहों में पत्तियों के ऊपर देती है, जिससे 6 से 7 दिन में सुंडियां निकलने लगती है. सुंडियों का जीवन-काल 30 से 40 दिन का होता है. ये पत्तियों को लपेटकर प्यूपा बना लेती है.
सेमीलूपर कीट का मुख्य आहार फसल की पत्तियां होती है, जिसे यह कुतर-कुतर कर खा जाता है. पत्तियों पर सेमीलूपर कीटों के आक्रमण के कारण चने के पौधे कमजोर एवं सफ़ेद होने लगते हैं. इसके अलावे ये अपना आहार फूलों, नई कलियों, एवं विकसित होने वाले दानों को भी बनाती है.
सेमीलूपर कीट को कृषिगत, रासायनिक, एवं जैविक उपायों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है:
यह दिखने में भूरे-मटमैले रंग का होता है. इसका भूरापन थोड़ा कालापन लिए होता है. इसकी लम्बाई 3 से 5 सेमी की हो सकती है.
मादा कटुवा कीट अपने पूरे जीवन-काल में 300 तक अंडे देने में सक्षम होती हैं. ये तने या पत्तियों के दोनों तरफ या फिर मिट्टी के ढेलों में अंडे देती हैं. अंडे से इल्लियाँ यानी बच्चे 8 से 10 दिन में निकलते हैं. अंडे से निकलने के बाद 3 से 5 सप्ताह तक ये फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं.
ये किटें दिन में मिट्टी में या पौधे के तने के बीच कहीं छिपी रहती है, जो रात में निकलकर कोमल पौधों, तनों एवं शाखाओं को जड़ से काटती है एवं कटे हुए भाग को भोजन के रूप में मिट्टी के अन्दर खींच कर ले जाती है.
कृषिगत एवं रासायनिक तरीकों द्वारा कटुवा कीटों पर समय रहते नियंत्रण पाकर चनें के फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है.
अगर समय पर कीट-प्रबंधन किया जाए, तो एक स्वस्थ फसल के साथ-साथ उच्च पैदावार प्राप्त किया जा सकता है. हमनें ऊपर चने को नुकसान प्रमुख कीटों के बारे में जानकारी दी है. विशेषकर कीटों को पहचानने एवं नियंत्रण पर विशेष फोकस किया है. क्यूंकि बिना फसल के दुश्मनों की पहचान कर हम समय पर अपने फसल को कीटों से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं.