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फसल चक्र क्या है? जानें सॉइल हेल्थ के लिए क्यों है ये जरुरी

Updated on 14th April, 2025, By Prashant Kumar
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फसल चक्र क्या है? जानें सॉइल हेल्थ के लिए क्यों है ये जरुरी
फसल चक्र मिट्टी में पोषकता को बनाए रखने की एक प्रक्रिया है, जिसमें एक ही भूमि पर दो या दो से अधिक फसलों को क्रमिक रूप से बोया जाता है, जिससे मिट्टी में पोषक तत्व बने रहते हैं एवं साइल हेल्थ में सुधार होता है। उल्लेखनीय है कि पौधे अपने विकास के लिए मिट्टी से पोषक तत्व प्राप्त करते हैं। मिट्टी में फसल के विकास के लिए नाइट्रोजन, पोटेशियम, कैल्सियम, फास्फोरस, सल्फर जैसे जरुरी पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, लेकिन इसकी मात्रा की भी सीमा है, उल्लेखनीय है कि एक लम्बी प्रक्रिया के दौरान इन सभी पोषक तत्वों का निर्माण होता है। अगर किसी मिट्टी में एक ही फसल की बार-बार बुआई/रोपाई करते हैं, तो वह अमुक फसल अपने विकास के लिए जरुरी पोषक तत्वों का दोहन कर उसे निम्नतम स्तर पर या शून्य स्तर पर ला सकता है, जिससे फसल की पैदावार में कमी हो जाती है। साथ ही रोग, कीट एवं खरपतवारों की समस्या बढ़ जाती है। इन समस्याओं से निपटने के लिए फसल चक्र की आवश्यकता महसूस की गई, ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे एवं खेती टिकाऊ हो सके।

फसल चक्र की अवधारणा कहाँ से आयी?

फसल चक्र की अवधारणा हजारों वर्षों पुरानी है। ऐसे कई साक्ष्य मिलते हैं, जिससे पता चलता है कि प्राचीन रोमन काल में भी किसान फसल चक्र की विधि अपनाते थे, जिसमें वें गेहूं के बाद फलियों की खेती किया करते थे। आधुनिक रूप में यह पद्धति यूरोप में 18वीं सदी में वैज्ञानिक रूप से अपनाई गई जब चार-फसली प्रणाली (Four Crop System) की शुरुआत हुई, जिसमें गेंहू, जौ, चारा एवं फलियाँ बारी-बारी से बोई जाती थीं। 

फसल चक्र की थ्योरी क्या है?

फसल चक्र के नीचे दिए गये कुछ मूलभूत थ्योरीज हैं, जिसपर ही फसल चक्र का पूरा कांसेप्ट आधारित है।

  • जिन फसलों के विकास के लिए सिंचाई की अधिक मात्रा लगती है, उन फसलों को कम सिचाई वाले फसलों से पहले बोना है।
  • जिन फसलों के विकास के लिए अधिक खाद की जरुरत पड़ती हैं, उन्हें पहले बोना है, एवं कम खाद की जरुरत वाले फसलों को बाद में बोना है।
  • जिन फसलों के लिए अधिक निराई-गुड़ाई की जरुरत पड़ती है उन्हें उन फसलों के पहले बोना है, जिनमें निराई गुड़ाई की कम आवश्यकता पड़ती है।
  • धान्य फसलों के बाद दलहनी फसलों की रोपाई/बुआई करनी है।
  • वैसे फसल जो मिट्टी से अपने विकास के लिए अधिक मात्रा में पोषण तत्वों का ग्रहण करते हैं, उन फसलों की कटाई के बाद खेत को परती अर्थात बिना कोई फसल उगाये वैसे ही छोड़ना है।
  • एक ही जीवों द्वारा नुकसान पहुचाने वाले फसलों को एक के बाद एक नहीं लगाना है।   
  • लोकल मार्केट के डिमांड को देखते हुए फसल को शामिल करना चाहिए।
  • जलवायु एवं किसानों की आर्थिक क्षमता के अनुसार फसल का चुनाव करना चाहिए।

भारतीय परिपेक्ष में फसल चक्र की प्रासंगिकता कितनी है?

भारत में उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय जलवायु होती है, जिसमें प्रति वर्ष दो या इससे अधिक फसलों को उगाया जाना संभव है। जिसके कारण यहाँ मृदा के स्वास्थ्य को कायम रखने के लिए फसल चक्रण की अवधारणा को कार्यरूप में परिणत किया जाता रहा है। यह ना केवल किसानों के जोखिम को कम करता है, बल्कि बेहतर लाभ भी सुनिश्चित करता है।

फसल चक्र के लिए फसल का सेलेक्शन कैसे करें?

फसल चक्र के लिए सही फसल चुनना मुश्किल हो सकता है। हमें कुछ बातों को जानना होगा जिनका पालन फसल चक्र के लिए फसल चुनते समय किया जाना चाहिए। आइए नीचे दिए गए मुख्य विचारों पर एक नज़र डालें:

  • मिट्टी संरचना में सुधार के लिए- मृदा संरचना में सुधार के लिए गहरी जड़ वाली फसलों को कम गहरी जड़ वाली फसलों के साथ ऑप्शनल रूप में लगाना चाहिए।
  • मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए- उच्च नाइट्रोजन की मांग वाली फसलों को मिट्टी की आवश्यकताओं को पूरा करने एवं इसे अधिक उपजाऊ बनाने के लिए सिस्टम नाइट्रोजन-फिक्सिंग फसलों के साथ ऑप्शनल रूप से लगाना चाहिए।
  • खरपतवार एवं कीट नियंत्रण के लिए- धीमी गति से बढ़ने वाली फसलों को खरपतवार को दबाने वाली फसलों के बाद लगाना चाहिए क्योंकि वे खरपतवार के आक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

फसल चक्र में क्षेत्र के अनुसार प्रयोग की जाने वाली प्रमुख फसलें

जलवायु एवं मिट्टी के प्रकार के अनुसार देश भर में फसल चक्र की प्रक्रिया में विभिन्न प्रकार के फसलों को अपनाया जाता है।

फसल चक्र- प्रयोग की जाने वाली फसलें

क्षेत्र

चावल-दालें, ज्वार-दालें, बाजरा-दालें, सोयाबीन-सरसों, मूंगफली-गेहूं, मक्का-दालें या तिपतिया घास

पूरे देश भर में

चावल-तिलहन, चावल-दालें, मक्का - दालें या तिलहन

वर्षा आधारित क्षेत्र

चावल-गेहूं, चावल-मक्का, मक्का-गेहूं

सिंचित क्षेत्र

चावल-सरसों

पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं उत्तरी पश्चिम बंगाल

चावल-सब्जी, गन्ना-गेहूं, गेहूं-सब्जी, गेहूं-दाल, गेहूं-परती, ज्वार-बरसीम, मक्का-सरसों, सरसों-सब्जी, मक्का-गेहूं

सिंधु-गंगा के मैदान

चावल- हरा चना/काला चना

पूर्वी भारत (ओडिशा, पश्चिम बंगाल)

भारत में फसल चक्र सबसे अधिक किन राज्यों में अपनाई जाती है?

भारत में फसल चक्र को सबसे अधिक निम्न बताये गए राज्यों में अपनाया जाता है:

  • मध्य प्रदेश (सोयाबीन–गेंहू)
  • बिहार (धान–गेहूं–दलहन)
  • झारखण्ड (धान–गेहूं–दलहन)
  • कर्नाटक (मक्का–तुअर–सूरजमुखी)
  • महाराष्ट्र (कपास–चना–ज्वार)
  • उत्तर प्रदेश (धान–गेंहू–सब्जियाँ)

फसल चक्र अपनाए जाने के क्या लाभ हैं?

फसल चक्र अपनाए जाने से पोषक तत्वों की मात्रा मृदा में हमेशा बनी रहती है। आइये जानते हैं इससे क्या-क्या लाभ है:  

  • रोग एवं कीटों पर नियंत्रण होता है।
  • बदल-बदल कर फसल उगाने से उत्पादन बढ़ता है।
  • पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलती है।
  • कार्बन-नाइट्रोजन के अनुपात में वृद्धि होती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता में बढ़ोतरी होती है।
  • मिट्टी का पीएच एवं क्षारीय स्तर फसल के अनुकूल बना रहता है।
  • मृदा के बहाव, क्षरण से बचाव होता है।
  • फसलों में रोगों का प्रकोप कम होता है।
  • फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीटों का नियंत्रण होता है।
  • खरपतवार का नियंत्रण होता है।
  • आय की प्राप्ति पूरे वर्ष होती है।
  • भूमि में फसल को हानि पहुँचाने वाले पदार्थ एकत्रित नहीं होते हैं।
  • फफूंद से फसल को होने वाले नुकसान से बचाव होता है।

फसल चक्र अपनाए जाने में चुनौतियां क्या-क्या हैं?

हालाँकि फसल चक्र हमारे लिए बहुत ही लाभकारी हैं, परंतु इससे आपनाए जाने में कुछ चुनौतियाँ भी हैं:

  • योजना बनाने में कठिनाई।
  • फसल की जानकारी एवं तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता।
  • बाजार में सभी फसलों के लिए मांग एवं मूल्य का असंतुलन।

ट्रैक्टरकारवां की ओर से

फसल चक्र एक ऐसी तकनीक है, जो न केवल कृषि को स्थायी एवं बेहतर फलदायी बनाती है बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है। आज के समय में जलवायु परिवर्तन एवं प्राकृतिक संसाधनों की सीमितता को देखते हुए फसल चक्र को अपनाना समय की मांग है। हमनें इस आर्टिकल में फसल चक्र से जुड़ी सभी जानकारी देने का प्रयास किया है। हमारा उद्देश्य है इस आर्टिकल को पढ़कर किसान फसल चक्र की जरुरत एवं महत्त्व को समझते हुए इसे अपनाएँ, ताकि मिट्टी की उर्वरता शक्ति बनी रहने के साथ-साथ फसल की पैदावार में वृद्धि हो सके।

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Prashant Kumar
Prashant Kumar is a seasoned Hindi content expert with interests in Tractors & Agriculture domain. He has over 12 years of experience and has worked for various media houses in the past. In his free time, he is a poet and an avid traveller.
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